हिंदू कोड बिल का महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ा ?

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हिंदू कोड बिल
हिंदू कोड बिल

15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ. सभी भारतवासियों के लिए यह बहुत खुशी का दिन था. लेकिन भारत के सामाजिक ढाँचे में बदलाव की बात करें, तो उसके वर्तमान स्थिति में आने के लिए कई कदमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जिने हिंदू कोड बिल का भी बहुत अधिक महत्व रहा है. भारत की आजादी के समय तक भारत के लोगों की साक्षरता दर बहुत कम नहीं. समाज में रूढ़ीवादी विचारधारा बहुत फैली हुई थी.

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हिंदू कोड बिल

इसी कारण महिलाओं और पुरूषों में बहुत भेदभाव होते थे. इन्हीं में समानता लाने में हिंदू कोड बिल ने मील के पत्थर का काम किया. हिंदू कोड बिल का समाज में महिलाओं की स्थिति पर दूरगार्मी सकारात्मक प्रभाव पड़ा तथा उनको भी वो अधिकार मिलें, जिनसे उन्हें वंचित रखा गया था.

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हिंदू कोड बिल

भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने देश की बेटियों की मजबूती के लिए ऐसा खाका तैयार किया, जिसमें विवाह, तलाक, संपत्ति आदि तमाम मुद्दों पर उनको अधिकार देने की बात की गई. उन्होंने सन् 1951 में संसद में ‘हिंदू कोड बिल’, पेश किया. हालांकि जिस दृढ़ता से इस बिल को अंबेडकर जी ने बतौर तत्कालीन कानून मंत्री के रूप में पेश किया, उतनी ही शिद्दत से इसका विरोध भी हुआ. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को पसंद होते हुए भी यह बिल पास न हो सका और जिसके कारण डॉ. अंबेडकर जी ने इस्तीफा दे दिया.

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पहले लोकसभा चुनाव के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने, ‘ हिंदू कोड बिल ‘ को कई हिस्सों में बांटकर, कई एक्ट बनाए, जैसे- ‘हिंदू मैरिज एक्ट 1955’, ‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956’, ‘हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम’, हिंदू अवयस्कता और संरक्षक अधिनियम आदि. जिसके कारण महिलाओं को समाज में बराबरी का अधिकार मिल पाया. इससे पहले महिलाओं का मतदान का अधिकार तो आजादी के साथ ही प्राप्त हो गया था, लेकिन संपत्ति , विवाह और सामाजिक स्वतंत्रता में हिंदू कोड बिल का बहुत बड़ा योगदान रहा है.