कोरोना वायरस संक्रमण से प्रभावित ज़्यादातर देशों ने सोशल डिस्टेंसिंग को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए लॉकडाउन का रास्ता चुना है लेकिन मुख्यधारा के इस चुनाव को कुछ वैज्ञानिक ये कहते हुए चुनौती दे रहे हैं। कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करके हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने के बारे में सोचना चाहिए। विशेषज्ञ अब इस बीमारी से निपटने के लिए हर्ड इन्यूनिटी का सहारा लेने पर भी गौर करने की बात कह रहे हैं।
यानी राजधानी की 60-70 फीसदी आबादी कोरोना से पीड़ित हो जाए और लोगों में इसका एंटीबॉडी बन जाए। जब वायरस एक शरीर से दूसरे शरीर में ट्रांसफर होगा तो उसकी क्षमता धीरे-धीरे कम होते जाती है और धीरे-धीरे यह खत्म हो जाता है। ऐसे में कमजोर वायरस को फिर से फैलने के लिए किसी मजबूत वायरस की जरूरत पड़ती है। हालांकि हर्ड इन्यूनिटी पर अभी भी विशेषज्ञों में मतभेद हैं और कई विशेषज्ञ तो इसे खतरा भी बताते हैं। हर्ड इम्युनिटी मेडिकल साइंस का एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है।
इसके तहत देश की आबादी का एक तय हिस्से को वायरस से संक्रमित कर दिया जाता है। ताकि वो इस वायरस से इम्यून हो जाएं। यानी उनके शरीर में वायरस को लेकर एंटीबॉडीज बन जाएं। इससे भविष्य में कभी भी वो वायरस परेशान नहीं करेगा। मशहूर कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अंशुमान कुमार का मानना है कि दिल्ली में यह वायरस कम्युनिटी स्टेज स्प्रेड में पहुंच गया है। यानी बिना किसी के संपर्क में आए किसी को कोरोना हो रहा है तो यह स्टेज थ्री कहलाता है यानी कम्युनिटी स्प्रेड। उन्होंने साथ ही कहा कि 84 फीसदी केस ऐसे हैं जिनमें इस जानलेवा बीमारी के लक्षण ही नहीं आते हैं और वे अपने आप ठीक भी हो जाते हैं।
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उन्होंने कहा कि वायरस से निपटने के चार तरीके होते हैं। पहला, वैक्सीन तैयार हो जाए। दूसरा, एंटी वायरस दवा मिल जाए, तीसरा, प्लजमा थेरिपी, लेकिन इस थेरिपी में अभी इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं कि इससे पीड़ित मरीज का इलाज हो ही जाएगा। चौथा, हर्ड इन्यूनिटी। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि हॉटस्पॉट वाली जगहों पर हर्ड इन्यूनिटी विकसित हो गया हो और लोग इससे अपने आप ठीक भी हो रहे हों। उन्होंने कहा लेकिन इसका पता लगाने के लिए हमें एंटीबॉडी किट की जरूरत होगी। तभी हम पता कर पाएंगे कि कितने लोग कोरोना से संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं। ऐसे लोगों के शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी घूम रही होगी।
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