भारत एक लोकतांत्रिक देश है. जिसमें अपने प्रधान या शासक का चुनाव जनता द्वारा एक निश्चित समय के लिए किया जाता है. उसके बाद फिर से चुनाव होता है. लेकिन काफी बार ऐसा भी होता है कि जब हम किसी प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं, तो वह हमें अच्छा लगे. लेकिन चुने जाने के बाद वह हमारी आशा के अनुरूप काम ना करे. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कुछ राज्यों में राइट टू रिकॉल के कानून को लागू करने पर विचार किया है.
राइट टू रिकॉल का साधारण शब्दों में अर्थ होता है कि जिसको हमने चुनकर जिम्मेदारी दी थी, हम उसको वापस बुलाते हैं. इस प्रक्रिया में मुखिया द्वारा अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उसको पद से हटा दिया जाता है. इसके बाद फिर से चुनाव होता है.
अभी कुछ समय पहले हरियाणा की विधानसभा में भी राइट टू रिकॉल के बिल को पास किया गया. इसके लिए दो-तिहाई बहुत का होना जरूरी होता है. जिसके बाद मुखिया को उसके पद से हटाया जा सकता है. हरियाणा के बिल में मुखिया को पद से हटाने के लिए यह प्रक्रिया वर्ष में सिर्फ एक बार ही अपनाई जा सकती है. लोकतंत्र के नजरिए से देखें तो यह एक बहुत अच्छा कदम होता है क्योंकि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि यदि सही से काम ना करें,तो जनता अपना प्रतिनिधि बदलने का अधिकार रखती है.
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अगर इस राइट टू रिकॉल के दूसरे पहलू पर बात करें, तो इसमें कुछ समस्याएं भी आती है. भारत में ये किसी से छुपा हुआ नहीं है कि चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च किया जाता है. लेकिन राइट टू रिकॉल के द्वारा जनता हर बार अपने प्रतिनिधियों को बदलती रहे तो यह बहुत खर्चीला साबित होगा. इसके अलावा प्रतिनिधि भी जब अपने कार्यकाल के प्रति निश्चिंत नहीं होगें, तो वो भी सही से काम नहीं कर पाएगें.