सवाल 57- धर्म की परिभाषा क्या हैं?

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सवाल 57- धर्म की परिभाषा क्या हैं?

धर्म का अर्थ होता है, धारण, यानी जिसे धारण किया जा सके. गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है. धर्म को गुण भी कहा जा सकता हैं. शायद ही ऐसे कुछ ही लोग होगें जो धर्म के बारे में जानते होगें. धर्म एक संस्कृत भाषा का शब्द है जो धारण करने वाले धृ धातू से बना है.


“धार्यते इति धर्म:” इसका मतलब है जो धारण करते है वहीं धर्म कहलाता है अथवा लोक और परलोक के सुखों की सिद्धि के लिए सार्वजनिक पवित्र गुणों व कर्मो को धारण करना ही धर्म माना गया है. दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता हैं कि मनुष्य के जीवन को ऊँचा व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजनिक मर्यादा पद्धति हैं. जिसे धर्म कहा गया है.


जैमिनी मुनि के मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र को भी धर्म का लक्षण कहा जाता है. बता दें कि मीमांसा दर्शन हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है. इस शास्त्र का ‘पूर्वमीमांसा’ व वेदान्त का ‘उत्तरमीमांसा’ भी कहते है. लोक परलोक के सुखों को भी एक तरीके से धर्म का लक्षण कहा जाता है.


कहा जाता है कि वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम स्वरूप पर प्रकाश डालने वाला विश्व का प्राचीनतम् साहित्य है. वैदिक साहित्य में धर्म वस्तु के स्वाभाविक गुणों और कर्तव्यों के अर्थो में भी आया हैं. जैसे जलाना और प्रकाश देना अग्नि का धर्म हैं. और प्रजा का पालन और रक्षा करना राजा का धर्म होता हैं.

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मनु स्मृति में धर्म की परिभाषा
धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं

इसका अर्थ है धैर्य, क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फंसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि व ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण होते हैं. दूसरी और कहा गया है कि आचार: परमो धर्म जिसका अर्थ है. सदा ही परम धर्म है. बताते चले कि ऐसा महाभारत काल में लिखा गया था.

धारणाद धर्ममित्याहु:,धर्मो धार्यते प्रजा: इसका अर्थ है धारण किया जाएं और जिसने प्रजाएं धारण की हुई हैं. वहीं धर्म है. यतोअभयुद्य निश्रेयस सिद्धि: स धर्म: इसमें कहा गया है कि जिससे लोकोन्नति और मोक्ष की सिद्धि होती हैं, वह धर्म कहलाता हैं.


स्वामी दयानंद आर्य समाज के संस्थापक, आधुनिक भारत के महान चिंतक, समाज-सुधारक और देशभक्त थे. जिनके अनुसार धर्म की परिभाषा है. जो पक्ष पात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य को हमेशा के लिए त्याग देता है. उनका कहना है कि उसी को धर्म कहते है और जो इसके विपरीत है उसे अधर्म कहते है.

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ऐसे ही कई लोग है जो धर्म की अलग- अलग परिभाषा देते है. धर्म मनुष्य के विकास और उन्नति के लिए बहुत ही जरूरी है. जिसकों समझने के लिए हमें सबसे पहले धर्म और मजहब में अंतर को समझना पड़ेगा. कार्ल मार्क्स ने जिसे धर्म के नाम पर अफीम कहकर निष्कासित कर दिया था. वह धर्म नहीं मज़हब था. कार्ल मार्क्स ने धर्म ने नाम पर किये जाने वाले रक्तपात, अन्धविश्वास, बुद्धि के विपरीत किये जाने वाले पाखंडों आदि को धर्म कहा था.

आशा करते है कि आप सभी को इस प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा. आप लोग ऐसे ही प्रश्न पूछते रहिए हम उन प्रश्नों के उत्तर आपको खोजकर देंगे. आप कमेंट बॉक्स में अपनी राय और कमेंट करके अपने प्रश्नों को पूछ सकते है. इस सवाल को पूछने के लिए आपका धन्यवाद