जज और मजिस्ट्रेट में क्या अंतर होता है ?

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जज और मजिस्ट्रेट में क्या अंतर होता है ?
जज और मजिस्ट्रेट में क्या अंतर होता है ?

हम से बहुत से सवाल पूछे गए उनमें से हमारे पास एक सवाल बहुत बार आया है की जज और मजिस्ट्रेट में आखिरकार क्या अन्तर है या कोई अंतर है भी या नहीं !! तो चलिए आज हम आपकी यह दुविधा को दूर करने की कोशिश करते है। पहले यह जानते है की जज क्या होता है , और उनका क्या रोल होता है।

जज : न्यायाधीश जिसका मतलब होता है निर्णय लेने वाला , यह अदालत की कार्यवाही का पालन करते है और उसके तहत मामले के विभिन्न तथ्यों और विवरणों पर विचार करके कानूनी मामलों पर सुनवाई और निर्णय लेते है। कानून में, एक न्यायाधीश को न्यायिक अधिकारी के रूप में वर्णित किया गया है।

न्यायधिश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं और राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य के गवर्नर के साथ चर्चा के बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं.राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद राज्यपाल द्वारा जिला न्यायाधीशों को नियुक्त की जाती है. प्रत्येक सत्र विभाग के लिए उच्च न्यायालय द्वारा सत्र न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है और कानूनी आधार पर उनको मौत की सजा सुनाने की भी शक्ति दी गई है।

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मजिस्‍ट्रेट : एक सिविल अधिकारी होता है, जो किसी विशेष क्षेत्र, यानी जिला या शहर में कानून का प्रबंधन होता है. यह वह व्यक्ति है जो सिविल या क्रिमिनल मामलों को सुनता है और निर्णय देता है. जिला मजिस्ट्रेट या कलेक्टर जिले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होता है.सरकारी एजेंसियों के मध्य आवश्यक समन्वय की स्थापना करता है।

अब जानते है की आखिरकार मेजिस्ट्रेट कितने प्रकार के होते है ?
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट: दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को महानगरीय क्षेत्रों के रूप में माना जाता है और ऐसे क्षेत्रों के लिए नियुक्त मजिस्ट्रेट को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कहा जाता है. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट सत्र न्यायाधीश को रिपोर्ट करता है और मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होता है।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट : हर जिले में उच्च न्यायालय द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त किया जाता है. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सत्र न्यायाधीश द्वारा अधीनस्थ और नियंत्रित होता है. उनके पास कारावास की सजा या जुर्माना लगाने की शक्ति सात साल से अधिक नहीं होती है।

न्यायिक मजिस्ट्रेट : उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद, राज्य सरकार प्रत्येक जिले में प्रथम और दूसरी श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की संख्या को सूचित कर सकती है. न्यायिक मजिस्ट्रेट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होता है और सत्र न्यायाधीश द्वारा शासित किया जाता है।

कार्यकारी मजिस्ट्रेट: राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार एक जिले में कार्यकारी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया जाता है. इन कार्यकारी मजिस्ट्रेटों में से एक को जिला मजिस्ट्रेट और एक को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया जाता है ।

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