गोवर्धन परिक्रमा में क्या है मुखारविंद का इतिहास?

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गोवर्धन परिक्रमा
गोवर्धन परिक्रमा

गोवर्धन परिक्रमा में क्या है मुखारविंद का इतिहास? ( What is the history of Mukharvind in Govardhan Parikrama )

गोवर्धन की परिक्रमा का कलयुग में विशेष महत्व है. गोवर्धन पर्वत को गिरिराज भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत योगेश्वर भगवान का साक्षात स्वरूप है. बड़ी संख्यों में भक्तों द्वारा इसकी परिक्रमा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि व गोवर्धन की परिक्रमा करने पर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. अगर परिक्रमा की बात करें, तो प्राचीन काल से ही हमारे देश में प्रकृति की परमात्मा के रूप में पूजा की जाती है. परिक्रमा एक पूजा करने का तरीका है. हिंदू धर्म में परिक्रमा को  ‘प्रदक्षिणा’ भी कहा जाता है.

गोवर्धन की पूजा क्यों की जाती है ?

गिरिराज गोवर्धन को योगेश्वर भगवान का साक्षात रूप माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि एक बार इंद्र का अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड हो गया था. ब्रजवासी इंद्र की पूजा करते थे. लेकिन कृष्ण भगवान उनको गोबर की पूजा करने के लिए कहते हैं. जिससे इंद्र को गुस्सा आता है तथा वह ब्रजवासियों से इस बात का बदला लेने के लिए तेज बारिश शुरू कर देता है.

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गोवर्धन पर्वत

ब्रज की जनता को इससे बचाने के लिए भगवान कृष्ण द्वारा 7 दिनों तक अपने वाम हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नख पर इस पर्वत को धारण किया गया था. गिरिराज गोवर्धन की यह परिक्रमा अनंत फलदायी व पुण्यप्रद होती है.गिरिराज गोवर्धन उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले से लगभग 22 किमी की दूरी पर स्थित है. गिरिराज गोवर्धन पर्वत 21 किमी के परिक्षेत्र में फैला हुआ है. गिरिराज पर्वत की परिक्रमा 7 कोस अर्थात 21 किमी की होती है.

क्या होते हैं मुखारविंद-

मुखारविंद के बारे में मान्यता है कि यहां से परिक्रमा शुरू की जाती है तथा यहीं पर खत्म की जाती है. गोवर्धन की परिक्रमा वैसे तो कहीं से भी प्रारंभ की जा सकती है किंतु मान्यता अनुसार गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा प्रारंभ करने हेतु तीन मुखारविंद हैं. ये 3 मुखारविंद हैं- गोवर्धन दानघाटी, जतीपुरा और मानसी-गंगा हैं.

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गोवर्धन पर्वत

मुखारविंद का इतिहास-

मानसी गंगा- ऐसा माना जानता है कि कृष्ण भगवान के बुलाने पर दीपावली के दिन गोवर्धन में गंगा प्रकट हुई थी. मान्यता है कि कृष्ण भगवान द्वारा मन से प्रकट करने के कारण ही इसका नाम मानसी गंगा पड़ा. गोवर्धन दानघाटी की बात करें तो ब्रज की गोपियां राधाकुंड से मथुरा के राजा कंस को माखन का कर चुकाने जाती थीं.

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कन्हैया ग्वाल बाल के साथ माखन और दही का दान लेते थे. यह कान्हा की दानलीला मनुहार प्रेम और खींचातानी भावमयी लीला का अनूठा संग्रह है. इसी स्थान पर आज भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है. जतीपुरा—मुखारविंद: मथुरा के गोवर्धन में स्थित वल्लभ संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है. यहीं गोवर्धन में श्रीनाथजी का प्राचीन मन्दिर है. जतीपुरा में ‘अष्टछाप’ के कवि सूरदास आदि कीर्तन किया करते थे.

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