जानिए, बद्रीनाथ धाम से जुड़े हुए कुछ खास तथ्य !

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बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड सृष्टि का आठवां वैकुंठ धाम कहलाता है. इस धाम के कपाट खुलते ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगना शुरू हो जाती है. बता दें कि यह हिन्दुओं के चार धामों में से एक धाम है, जो अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है. इस धाम कि सबसे बड़ी खास बात ये है कि यहां पर भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते है और 6 माह जागते है, साथ ही कहा जाता है कि इसके कपाट 6 महिने खुलते है और 6 महिने बर्फबारी की वजह से बन्द रखे जाते है. इस धाम का निर्माण आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने कराया था.

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आइए जानते है बद्रीनाथ से जुडी कुछ खास बाते
बद्रीनाथ धाम से जुड़ी एक मान्यता है कि ‘जो आए बदरी, वो न आए ओदरी’. इसका मतलब जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन एक बार कर लेता है उन्हें दोबारा माता के गर्भ में नहीं प्रवेश करना पड़ता.
बद्रीनाथ के बारे में कहा जाता है कि यहां पर पहले भगवान शिव निवास करते थे और उन्होंने ये स्थान भगवान विष्णु के लिए त्याग दिया था.


बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है. इन्हें नर नारायण पर्वत कहा जाता है. कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी. नर अपने अगले जन्म में अर्जुन तो नारायण श्री कृष्ण के रूप में पैदा हुए थे.


कहा जाता है कि केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलते समय मंदिर में जलने वाले दीपक के दर्शन का खास महत्व होता है. ऐसा माना जाता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर देवता इस दीपक को जलाए रखते हैं.


बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं. जब तक यह लोग रावल पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्माचर्य का पालन करना पड़ता है. इन लोगों के लिए स्त्रियों का स्पर्श वर्जित माना जाता है.

केदारनाथ के कपाट खुलने की तिथि बद्रीनाथ के रावल के निर्देशन में उखीमठ में पंडितों द्वारा तय की जाती है. इसमें सामान्य सुविधाओं के अलावा परंपराओं का भी ध्यान रखा जाता है. यही कारण है कि कई बार ऐसे भी मुहूर्त भी आए हैं जिससे बद्रीनाथ के कपाट केदारनाथ से पहले खोले गए हैं. जबकि आमतौर पर केदारनाथ के कपाट पहले खोले जाते हैं.