सवाल 31- महाभारत में चक्रव्यूह क्या था, इसे कैसे तोड़ा जाता है?

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सवाल 31- महाभारत में चक्रव्यूह क्या था, इसे कैसे तोड़ा जाता है?

महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की नीति के चलते अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को चक्रव्यूह को भेदने का आदेश दिया गया. यह जानते हुए भी कि अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदना तो जानते हैं, लेकिन उससे बाहर निकलना नहीं जानते. बता दें कि अभिमन्यु जब सुभद्रा के गर्भ में थे तभी चक्रव्यूह को भेदना सीख गए थे लेकिन बाद में उन्होंने चक्रव्यूह से बाहर निकलने की शिक्षा कभी नहीं ली. अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र व श्रीकृष्ण के भांजे थे.


अभिमन्यु के चक्रव्यूह में जाने के बाद उन्हें चारों ओर से घेरा गया. जिसके बाद उनकी जयद्रथ सहित 7 योद्धाओं ने निर्मम तरीके से उनकी हत्या कर दी, जो कि इस युद्ध के नियमों के विरुद्ध था. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण यही चाहते थे. जब कोई नियम एक बार एक पक्ष से तोड़ दिया जाता है, तो दूसरे पक्ष को भी इसे तोड़ने का मौका मिलता है.

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चक्रव्यूह क्या होता है
युद्ध को लड़ने के लिए पक्ष या विपक्ष अपने हिसाब से व्यूह रचना करते है. व्यूहरचना का अर्थ है कि किस तरह सैनिकों को सामने खड़ा किया जाए. आसमान से देखने पर यह व्यूह रचना दिखाई देती है. जैसे क्रौंच व्यूह हो, अगर क्रौंच पक्षी की तरह आसमान से खड़ें होकर देखा जाए तो सैनिक खड़े हुए दिखाई देंगे. इस चक्रव्यूह को देखने पर इसमें अंदर जाने का रास्ता तो नजर आता है, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता नजर नहीं आता.


ऐसा माना जाता है कि चक्रव्यूह की रचना द्रोण ने की थी. इस व्यूह को घूमते हुए चक्के की शक्ल में बनाया जाता था, जैसे आपने स्पाइरल को घूमते हुए देखा होगा. कोई भी नया योद्धा इस व्यूह के खुले हुए हिस्से में घुसकर वार करता है या किसी एक सैनिक को मारकर अंदर घुस जाता है. यह समय क्षणभर का होता है, क्योंकि मारे गए सैनिक की जगह तुरंत ही दूसरा सैनिक ले लेता है


योद्धा में मरने पर चक्रव्यूह में उसके बगल वाला योद्धा उसका स्थान ले लेगा, वो इसलिए क्योंकि सैनिकों की पहली कतार घूमती रहती है. जब कोई अभिमन्यु जैसा योद्धा व्यूह की तीसरी कतार में पहुंच जाता है. तो उसके बाहर निकलने के रास्ते बंद हो जाते हैं. यदि वह पीछे मुड़कर देखेगा तो सैनिकों की कतारबद्ध फौज खड़ी होगी. व्यूह के घुस जाने के बाद अब योद्धा चौथे स्तर के बलिष्ठ योद्धाओं के सामने खुद को खड़ा पाता है.


इस चक्रव्यूह में योद्धा लगातार लड़ते हुए अंदर की ओर बढ़ता जाएगा और थकता भी जाएगा. लेकिन जैसे-जैसे वो अंदर तक पहुंचेगा, अंदर के जिन योद्धाओं से उसका सामना होगा वो थके हुए नहीं होंगे. ऊपर से वे पहले वाले योद्धाओं से ज्यादा शक्तिशाली व ज्यादा अभ्यस्त भी होते है. शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए योद्धा के लिए एक बार अंदर फंस जाने पर जीतना या बाहर निकलना बहुत ही ज्यादा कठिन हो जाता है. अभिमन्यु के साथ यही हुआ.

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चक्रव्यूह को कैसे तोड़ते हैं
कुशल योद्धा देखता है कि बाहर की ओर योद्धाओं का घनत्व कम कितना है और अंदर के योद्धाओं का घनत्व कितना है. इस घनत्व को बराबर या कम करने के लिए ये जरूरी होता है कि बाहर की ओर खड़े अधिक से अधिक योद्धाओं को मारा जाए. इससे व्यूह को घुमाते-चलाते रखने के लिए अधिक से अधिक योद्धाओं को अंदर से बाहर धकेलना होता है. जिससे अंदर की तरफ योद्धाओं कम हो जाते है.


इस व्यूह रचना में योद्धाओं के स्थान परिवर्तन से ये पूरा घूम जाता है. निश्‍चित ही एक कुशल योद्धा को यह भी मालूम होता है कि घूमते हुए चक्रव्यूह में एक खाली स्थान भी आता है, जहां से निकला भी जा सकता है. वह अपने बल से हर कतार के एक-एक योद्धाओं को मारते हुए बाहर निकल सकता है.

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