तीन तलाक पर राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदल दिया था!

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करोड़ों लोगों की निगाहें आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर थी। तीन तलाक पर फैसला सुरक्षित था। बात मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की थी, उनके स्वाभिमान और शोषण की थी। एक तरफ जहां ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस प्रथा को कायम रखना चाहता था, वहीं दूसरी तरफ सरकार और शायरा बानो इसकी मुखालफत कर रहे थे। आखिरकार फैसला आ ही गया और देश के उच्चतम अदालत ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में फैसला देते हुए तीन तलाक को अवैध करार दिया, साथ ही सरकार को इसके लिए उचित कानून बनाने का निर्देश दिया।

राजीव गांधी सरकार ने बहुमत की ताकत से फैसले को बदला था

लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल, 1985 को मुस्लिम महिला शाह बानो के मामले में तीन तलाक को लेकर ऐसा ही फैसला सुनाते हुए पति मोहम्मद अहमद खान को अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा था। माननीय उच्चतम न्यायालय ने आज से 32 वर्ष पहले ही मुस्लिम महिलाओं को इस तीन तलाक नामक शोषक प्रथा से मुक्ति दिला दिया था। लेकिन तब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने (जिसके अगुआ राजीव गांधी थे) मुस्लिम वोट बैंक के कारण इस फैसले को अपने बहुमत का दुरूपयोग कर निष्प्रभावी कर दिया था।

दरअसल पहले सरकार सुप्रीम कोर्ट के पक्ष में थी, पर स्थानीय चुनाव में कांग्रेस को इसके कारण हार का सामना करना पड़ा इसके कारण राजीव सरकार डर गई और उन्होंने 1986 में मुस्लिम महिला अधिनियम पारित कर दिया गया।

क्या है मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986
एक मुस्लिम महिला सांसद ने मुस्लिम वीमेन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) बिल, नाम से एक निजी बिल पेश किया। इस मंशा से कि मुस्लिम अपने पर्सनल लॉ का संरक्षण कर सकें। यह बिल 1986 में पारित हो गया जिसके तहत कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, 1973 की धारा 125 को मुस्लिम महिलाओं के लिए अमान्य कर दिया गया। राजीव गांधी के नेतृत्व में निष्ठुर बहुमत वाली कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया और इस प्रकार धर्म के नाम पर-और वोट बैंक की राजनीति के लिए गरीब मुस्लिम महिलाओं के हितों को कुर्बान कर दिया।

शायरा बानो की याचिका पर फिर चर्चा में आया शाह बानो केस: उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली शायरा बानो का निकाह साल 2002 में इलाहाबाद के रिजवान अहमद से हुई थी। ससुराल वालों की दहेज प्रताड़ना, फिर पति के तलाक देने के बाद शायरा बानो कोर्ट पहुंचीं। आरोप है कि पति शायरा बानो को लगातार नशीली दवाएं देकर याददाश्त कमजोर कर दिया और साल 2015 में मायके भेजकर तलाक दे दिया था।

शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह तीन बार तलाक बोलकर तलाक देने की बात को नहीं मानती हैं। शायरा की याचिका में ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937’ की धारा 2 की वैध्यता पर भी सवाल उठाए गए हैं. यही वह धारा है जिसके जरिये मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह, ‘तीन तलाक’ (तलाक-ए-बिद्दत) और ‘निकाह-हलाला’ जैसी प्रथाओं को वैध्यता मिलती है। इनके साथ ही शायरा ने ‘मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939’ को भी इस तर्क के साथ चुनौती दी है कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं को बहुविवाह जैसी कुरीतियों से संरक्षित करने में सार्थक नहीं है।