भारत में महामारियों का इतिहास बहुत पुराना है, किंतु व्यवहारिक रूप से आधुनिक भारत के इतिहास में ही बीमारियों का क्रमबद्ध अध्ययन किया जा सका है। सन 1857 में जब पूरा देश विद्रोह की आग में झुलस रहा था, तब ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना के कैम्पों में प्लेग फैला था। भारत में सबसे पहले 1857 में महाराष्ट्र में प्लेग के लक्षण दिखे थे। सन 1901 तक इसकी वजह से दस लाख लोग मर गए।
प्लेग 1931 तक अलग अलग क्षेत्रों में इसका उभार होता रहा। सन 1896 में बने प्लेग कमीशन के चेयरमैन फ्रेजर की अनुशंसा पर भारतीय प्लेग नियंत्रण कानून बनाया गया। 1994 में भारत के गुजरात में प्लेग फैला। विभिन्न प्रान्तों में इससे पीड़ित लोग हुए। दिल्ली में 68, यूपी में 10, कर्नाटक में 46, महाराष्ट्र-में 488 लोग इससे पीड़ित मिले।
सरकार ने इसकी रोकथाम पर सिफारिश करने के लिए प्रोफेसर रामलिंगम की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया।1918 में जब प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तो कई सैनिकों की स्वदेश वापसी हुई, जिसकी वजह से भारत मे स्पेनिश फ्लू फैला, इसकी चपेट में एक लाख वर्ग किमी का क्षेत्र और तकरीबन एक करोड़ लोग आए।मारबर्ग वायरस (Marburg Virus) को 1967 में खोजा गया था.
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इसके बारे में तब पता चला था जब जर्मनी की एक प्रयोगशाला में यह लीक हो गया और वहां के कुछ लोग बीमार हो गए. यह वायरस बंदरों से इंसानों में आया था. इसकी वजह से इंसानों में तेज बुखार आता है. शरीर के अंदर अंगों से खून बाहर निकलने लगता है. इससे कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. इंसान मर जाता है. इसकी वजह से बीमार लोगों में से 80 फीसदी की मौत हो जाती है।
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