कौन है भारत का सबसे जयदा फांसी देने वाला जल्लाद?

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कौन है भारत का सबसे जयदा फांसी देने वाला जल्लाद?

भारतीय संविधान में फांसी की सजा से बड़ी कोई दूसरी सजा नहीं लिखी गयी है. इससे पता चलता है कि जिस कलाम से फांसी की सजा लिखी जा चुकी हो, उस कलाम से उससे बड़ा और खतरनाक और कोई शब्द नहीं लिखा जा सकता है. लिहाजा फांसी की सज़ा लिखे जाने वाले कलम की उपयोगिता आईंदा के लिए समाप्त हो जाती है.

जिस कलम से किसी की ‘मौत’ लिखी जा चुकी है, उससे बुरी चीज भी भला दुनिया में और क्या हो सकती है. लिहाजा ऐसी चीज का नष्ट होना ही इंसानी दुनिया में ठीक है. जज ने एक बार किसी को फांसी की सजा सुना या लिख दी हो वो जज उस सजा या फैसले को खुद कभी वापिस नहीं ले सकता है.

जज के बाद अगर कोई दूसरा इंसान फांसी की सजा कैसे कड़े काम में शामिल होता है तोह वोह है फांसी देने वाला जल्लाद। तो चलिए इस आर्टिकल में आपको बताते है भारत के किस जल्लाद ने दी सबसे ज़यादा मुजरिमो को फँसी

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उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में रहने वाला एक अदद कल्लू जल्लाद का परिवार ही इस ‘बुरे’ और ‘जिल्लत भरे’ पेशे को जिंदा रखने की जद्दोजहद से जूझ रहा है. कालूराम जल्लाद के खानदान में भी इस अजीब-ओ-गरीब पेशे का इकलौता जीवित वारिस पवन कुमार ही बचा है.पवन के मुताबिक उनके दादा परदादा लक्ष्मन सिंह अंग्रेजों के जमाने में जल्लाद थे.

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बकौल पवन, लाहोर सेंट्रल जेल में उनके दादा ने ही ब्रिटिश सरकार के हुक्म पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के फंदे पर लटकाया था. हालांकि पवन के इस दावे से संबंधित देश के इतिहास में कहीं कुछ देखने-पढ़ने को नहीं मिलता है. पवन के मुताबिक परदादा की मौत के बाद उनके दादा कालूराम (कल्लू जल्लाद) ने ब-हुक्म भारत सरकार ‘जल्लादी’ के पेशे को विरासत में संभाला.

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कालांतर में कालूराम पुश्तैनी जल्लाद का काम अपने बेटे मम्मू (पवन के पिता) को विरासत में सौंप गए. बकौल पवन जल्लाद 25-26 साल की उम्र में पहली बार दादा कालूराम जल्लाद अपनी तनख्वाह लेने मेरठ जेल गए थे. उस दिन वो मुझे भी अपने साथ ले गये. जिंदगी में तभी पहली बार कोई जेल देखी. वो थी उत्तर प्रदेश की मेरठ जेल. उससे पहले कभी जेल देखने का मौका नहीं मिला था.

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