रामायण की गाथा
रामायण की गाथा अपरम पार है। प्रभु श्रीराम ने जब वनवास धारण किया तब उन्होंने अपने सभी राजसी वस्त्र त्याग दिए और तपस्वियों के वस्त्र धारण करके नग्न पैर ही वे वन को निकल गए। रास्ते में उन्हें जब जो मिला वह खा लिया और सो गए।
ऐसे कई अवसर आए जबकि वे राजाओं का भोजन कर सकते थे क्योंकि वे जहां से भी गुजरे वहां के राजा ने उन्हें निमंत्रण दिया और उनके लिए सभी तरह के बंदोबस्त करने का निवेदन भी किया, लेकिन प्रभु श्रीराम ऋषि और मुनियों के आश्रम में ही तब तक रहे जब तक की उन्होंने अपनी खुद की कोई पर्ण कुटिया अपने हाथों से न बना ली हो, जितनी अद्भुत राम की गाथा है , उतना ही अद्भुत लक्ष्मण की कथा भी है ,
क्या आप जानते है , प्रभु राम के साथ पूजे जाने वाले लक्ष्मण किसका रूप है। लक्ष्मण किसी और का नहीं शेषनाग का अवतार थे।
शेषनाग जी ने श्री हरि विष्णु जी से अगले अवतार के लिए जो द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में अवतरित होना था उसमें श्री विष्णु जी के बड़े भाई के रूप में अवतरित होने की विनती की जिसे श्रीहरि विष्णुजी ने स्वीकार कर श्रीशेषनाग जी को गौरान्वित किया और द्वापर में शेषनाग जी श्रीकृष्ण के बड़े भाई के रूप मे श्री बलराम जी (दाऊ भैया ) थे।
लक्ष्मण
भगवान राम के अनुज थे ‘लक्ष्मण’ जो 14 वर्ष के वनवास के समय उनके हमेशा साथ रहे। श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे तो लक्ष्मण जी ‘शेषनाग’ के अवतार थे। शेषनाग जी ने श्री हरि विष्णु जी से अगले अवतार के लिए जो द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में अवतरित होना था उसमें श्री विष्णु जी के बड़े भाई के रूप में अवतरित होने की विनती की जिसे श्रीहरि विष्णुजी ने स्वीकार कर श्रीशेषनाग जी को गौरान्वित किया और द्वापर में शेषनाग जी श्रीकृष्ण के बड़े भाई के रूप मे श्री बलराम जी थे।
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हिन्दू धर्म में छोटे भाई को भगवन लक्ष्मण के जैसे बनाने की सलाह दी जाती है , भगवन लक्ष्मण की मिसाल जग-जाहिर है , उन्होंने राम भगवन को वनवास में जाता देख , आपने भी सुख -आराम त्याग वो भी प्रभु राम के साथ 14 साल वनवास कटा और रावण के वध में एक एहम भूमिका निभाई।