क्यों पहलवानों की कान की हड्डी तोड़ दी जाती है ?

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क्यों पहलवानों की कान की हड्डी तोड़ दी जाती है ?

पहलवानों के कान अलग ही दिखते हैं। उनके कान तोड़े नहीं जाते बल्कि टूट जाते हैं। ये एक ऐसी प्रक्रिया है, दरअसल अत्यधिक परिश्रम करते समय शरीर का तापमान एक विशेष स्तर पर पहुंचने पर आपके कान पर लगा हल्का सा हाथ भी आपकी रक्त कोशिकाओं को फाड़ सकता है या आपकी कान की हड्डी को तोड़ सकता है।

कान में ख़ून भर जाने से कान की बनावट में बदलाव आ जाता है लेकिन पहलवान इसका इलाज नहीं करवाते क्योंकि इलाज के बाद ये फिर टूट सकते हैं लेकिन टूटे रहने पर इनमें कोई समस्या नहीं होती। अंग्रेज़ी में इसे कॉलीफ़्लावर ईयर भी कहते हैं यानि गोभी के फूल जैसे कान क्योंकि पहलवानी में चोट लगना और फिर आर्युवेदिक तरीके से उसका उपचार करना सामान्य बात है।

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कई बार कुश्ती करते समय मोच आ जाती है या कंधा उतर जाता है। एक पहलवान को शारिरिक संरचना का इतना ज्ञान होता है कि वो खुद ही इसे ठीक कर लेते हैं।पहलवानों को अपने वज़न को लेकर बेहद सतर्क रहना होता है। आपके वज़न में 100 ग्राम की तब्दीली भी आपको गलत भार वर्ग में ला सकती है, जिससे मुश्किल हो सकती है।

एक पहलवान ज्यादा खा ज़रूर सकता है लेकिन अच्छा पहलवान ऐसा कभी नहीं करेगा।अखाड़े की मिट्टी में औषधीय गुण होते हैं, लेकिन हर अखाड़े की मिट्टी में ऐसा हो ये बात भी सही नहीं है। दरअसल किसी भी अखाड़े में मिट्टी डालते समय उसमें हल्दी, तेल, मेंहदी को भर-भर कर मिलाया जाता है ताकि वो नरम रहे और शरीर की चोट को ठीक करे।

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पहले के जमाने में अखाड़े कि मिट्टी में दूध या मठ्ठा भी मिलाया जाता था और कई बार चोट लगने पर अखाड़े की मिट्टी के लेप से चोट ठीक हो जाती थीं लेकिन ये सही है कि आजकल ऐसा नहीं है क्योंकि अखाड़े में अब सामान्य मिट्टी मिलाई जाती है जिसमें सिर्फ़ पानी होता है।

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