भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सालों से चलता आ रहा है। भारत के ऐसे कई इलाके हैं जिनपर चीन अपना दावा करता है। इन्ही में से एक है अरुणाचल प्रदेश जो भारत का 24वां राज्य है और भौगोलिक दृष्टि से पूर्वोत्तर के राज्यों में यह सबसे बड़ा राज्य है। चीन कई सालों से इसके पीछे हाथ धोकर पड़ा है। असल में वो इसे अपना इलाका मानता है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत बताता है। वैसे तो तिब्बत ने भी कई साल पहले खुद को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था लेकिन चीन इसको नहीं मानता और उसपर अपना अधिकार बताता है।
शुरुआत में चीन अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी हिस्से तवांग को लेकर दावा करता था। दरअसल तवांग यहां का एक खूबसूरत शहर है जो हिमालय की तराई में समुद्र तल से 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यही पर विशाल बौद्ध मंदिर भी है जो 17वीं शताब्दी का बना हुआ है। यह तिब्बत के बौद्धों के लिए एक पवित्र स्थल है।
कहते हैं कि प्राचीन काल में भारतीय शासकों और तिब्बती शासकों ने तिब्बत और और अरुणाचल प्रदेश के बीच कोई निश्चित सीमा का निर्धारण नहीं किया था। यहां तक कि साल 1912 तक तिब्बत और भारत के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची गई थी, क्योंकि इन इलाकों पर न ही मुगलों का अधिकार था और न ही अंग्रेजों का। इस वजह से सीमा को लेकर भारत और तिब्बत के लोग भी असमंजस की स्थिति में थे।
सीमा रेखा के निर्धारण को लेकर 1914 में शिमला में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। उस समय ब्रिटिश शासकों ने तवांग और दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा माना, जिसे तिब्बत के प्रतिनिधियों ने भी स्वीकार किया लेकिन चीन इसे मानने को तैयार नहीं था इसलिए वो बैठक से निकल गया। बाद में इस पूरे इलाके को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली और वो भारत और विश्व के नक्शे पर आ गया।
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वैसे तो चीन तिब्बत को भी स्वतंत्र राष्ट्र नहीं मानता है। ऐसे में तवांग पर उसके फैसले को भी वो नहीं मानता। वो हमेशा से यह चाहता रहा है कि तवांग उसके अधिकार में आ जाए जो कि तिब्बती बौद्धों के लिए एक पवित्र जगह है। 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था तब चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था लेकिन बाद में वह पीछे हट गया था जिसके बाद भारत ने पूरे इलाके को अपने नियंत्रण में ले लिया था। पूरी दुनिया भले ही तवांग को भारत का हिस्सा मानती हो लेकिन चीन आज भी इसे मानने को तैयार नहीं है।
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