कथकली नृत्य में चेहरे रंगे हुए क्यों होते है?

1996

भारत संस्कृति , शास्त्रीय, नृत्य , और अभीन कला का देश है। भारत में कई तरह के नृत्य का गाड़ है। जो भारत की संस्कृति का प्रदर्शन करता है। भारत का सबसे प्रख्यात नृत्य कथकली विश्वर में प्रसिद्ध है। इसमें सिर के कपड़े, चेहरे के मुखौटे और ज्वलंत चित्रित चेहरे शामिल हैं। एक नाटक के लिए तैयार होने के लिए कथकली मंडली को तैयार होने काफी लम्बा वक़्त लगता है। कथकली की लोयपरिता का सबसे बड़ा कारण उसका श्रृंगार है।

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कथकली में श्रृंगार पर एक विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। इसका ड्रेस कोड भी काफी अलग है। जो दर्शकों को कट्टर चरित्रों जैसे देवी-देवताओं, राक्षसों, दानवों, संतों, जानवरों और एक कहानी के पात्रों को आसानी से पहचानने में मदद करता है और दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। कथकली में चरित्रों को चित्रित करने में श्रृंगार काफी अहम किरदार निभाता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है की कथकली में महाभारत से जोड़े , पौराणिक कथा से जोड़े किरदार निभाए जाते है और इसमें चेहरे क हाव – भाव काफी मायने रखते है। रंग पुता हुआ चेहरा कॉस्ट्यूम की भव्यता का पूरक होता है।

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वेशम या मेक-अप को बहुत महत्व दिया जाता है, जो पांच प्रकार के होते हैं- पचा, काठी, थाडी, कारी और मिनुक्कु। कथकली की शोभा और भव्यता में इसकी सज्जा की बड़ी भूमिका होती है जिसके अंग हैं किरीटम या विशाल सिरोभूषण और कंचुकम या बड़े आकार के जैकेट और लंबा स्कर्ट जिसे मोटे गद्दे के ऊपर से पहना जाता है। कलाकार के डील-डौल और शक्ल को पूरी तरह बदलकर सामान्य से बहुत बड़ा अतिमानवीय रूप दिया जाता है।कृष्ण, विष्णु, राम, शिवा, सूर्य, युधिष्ठिर, अर्जुन, नाला और दार्शनिक-राजा जैसे महान चरित्रों को चित्रित करते हैं। ताकि लोग चेहरे के हाव – भाव द्वारा कहानी को समझ सके और उन्हें किरदार को समझने में आसानी हो।