महाभारत के भीषण युद्ध का हिस्सा क्यों नहीं बने थे विदुर ?

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महाभारत के भीषण युद्ध का हिस्सा क्यों नहीं बने थे विदुर

महाभारत का भीषण युद्ध के गाथा सुनकर आज भी लोगो के रोंगटे खड़े हो जाते है. इस भीषण युद्ध में एक कुल के सदस्यों ने एक दूसरे का नाश किया था। जब विदुर ने द्रौपदी के अपमान का विरोध किया था और कौरवों के अत्याचार की कड़े शब्दों में निंदा कि थी , लेकिन कौरवों ने विदुर की बातो को नज़र अंदाज़ करते हुए , उसकी विनती को न सुना करदिया था। जब कौरव-पाण्डवों के बीच का विवाद चरम पर पहुंच चूका था। तब युद्ध तक पहुंच गया, तब श्रीकृष्ण हस्तिनापुर पांडवो की तरफ से शांतिदूत बनकरआए, ताकि दोनों गुटों में सुलह करा सके। उनके आने की खबर कौरवों में ज्येष्ठ दुर्योधन को मिल गई थी, इसलिए उसने उनके रहने के इंतज़ाम एक अच्छे स्थान पर करा दिए लेकिन श्रीकृष्ण ने उस स्थान पर जाने से साफ मना कर दिया और कहा कि वे विदुर एवं उनके परिवार के साथ रहना पसंद करेंगे।

विदुर

उस समय तो दुर्योधन कुछ नहीं बोला लेकिन अगली ही सुबह भरी सभा में उसने विदुर का अपमान किया। श्रीकृष्ण का साथ देने जैसे आरोप भी लगाए। इतना ही नहीं, साथ ही विदुर एक दासी का पुत्र है, और उसका अतीत क्या है इस सब पर भी उंगली उठाई। जिससे क्रोधित होकर विदुर ने उससे कहा कि यदि वह उस पर विश्वास ही नहीं करता तो वह यह युद्ध लड़ना ही नहीं चाहते। तत्पश्चात विदुर ने सबके सामने सभा में ही अपना हथियार तोड़ दिया।

महाभारत

ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण जानते थे कि दुर्योधन कुछ ऐसा ही करेगा इसलिए उन्होंने स्वयं विदुर के यहां रहने का फैसला किया था। क्योंकि यदि विदुर कौरवों की ओर से युद्ध का हिस्सा बन जाते तो पाण्डवों को यह युद्ध जीतने में बहुत बड़ी बाधा उत्पान हो सकती थी क्योंकि विदुर के पास एक ऐसा हथियार था जो अर्जुन के ‘गांडीव’ से भी कई गुणा शक्तिशाली था। विदुर महाभारत के सरल और ज्ञानी पात्र में से एक थे। उन्होंने अधर्म का हमेशा विरोध ही किया है।

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