क्या मेघनाद की मृत्यु लक्ष्मण जी के हाथों ही निश्चित थी? देखे वीडियो

1578

रामायण की कथा अपरम्पार है। ‘मेघनाद’ जो ‘इंद्रजीत’ के नाम से भी जाना जाता है, रावण का पुत्र था। अपने पिता की तरह यह भी स्वर्ग विजयी था। इंद्र को हारने के लिए ही ब्रह्मा जी ने इसका नाम इंद्रजीत रखा था। आदिकाल से अब तक यही एक मात्र ऐसा योद्धा है जिसे अतिमहारथी की उपाधि दी गई है। इसका नाम रामायण में इसलिए लिया जाता है क्योंकि इसने राम-रावण युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जो की ब्रह्मास्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पाशुपात अस्त्र के धारक कहे जाते हैं। इसने अपने गुरु शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर शिक्षा ली तथा त्रिदेवों द्वारा कई अस्त्र- शस्त्र एकत्र किए। स्वर्ग में देवताओं को हरा कर उनके अस्त्र-शस्त्र पर भी अधिकार कर लिया।

मेघनाद अपनी पिता की भक्ति करता था। उसे यह पता चलने पर की राम स्वयं भगवान है फिर भी उसने पिता का साथ नही छोड़ा। मेघनाद की भी पितृभक्ति प्रभु राम के समान अतुलनीय है।

त्रिदेव भी मेघनाद को नहीं मार सकते थे। राम, श्रीहरि के अवतार थे और श्रीहरि त्रिदेव में से एक हैं। इसलिए वह मेघनाद का वध नहीं कर सके। मेघनाद का वध लक्ष्मण ने ही किया। कहते हैं जब मेघनाद का जन्म हुआ तब वह रोया नहीं बल्कि उसके रोने की बजह बिजली की आवाज सुनाई दी। रावण ने इसलिए अपने शिशु का नाम मेघनाद रखा।

ब्रह्मा जी ने उसे वरदान भी दिया कि ‘जो व्यक्ति 14 साल तक न सोया हो, उसने किसी स्त्री का चेहरा देखा और चौदह वर्ष खाना नहीं खाया हो वही व्यक्ति मेघनाद का संहार कर सकता है।’

त्रेतायुग में लक्ष्मण ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे। जिन्होंने 14 वर्ष तक न अन्न खाया, न ही किसी स्त्री का चेहरा देखा और और ना ही 14 साल तक सोए थे। जब ये बात श्रीराम को पता चली तो उन्होंने लक्ष्मण से पूछा, “अनुज तुमने यह सब कैसे किया?”

meghnaad 22 11 2016 -

तब लक्ष्मण जी ने कहा, “जब आप सुग्रीव के साथ माता सीता के आभूषण देख रहे थे तब सिर्फ मैं उनके पैरों के आभूषण ही पहचान सका क्योंकि मैंने कभी उनका चेहरा नहीं देखा था। वहीं जब आप सो जाते थे तो रातभर जागकर मैं आपकी रक्षा के लिए पहरेदारी करता था।”

यह भी पढ़ें : हनुमान जी के मंदिर में किस दिन नारियल चढ़ाना होता है शुभ मंगलवार या शनिवार

“एक बार निद्रा मेरे पास आई तो मैंने उसे अपने बाणों से पराजित कर दिया और फिर उसने यह वचन दिया कि वह 14 साल तक मेरे पास नहीं आएगी। तो 14 साल बाद जब आपका राज्याभिषेक हो रहा था तब मैं छत्र लिए आपके पीछे खड़ा था। उसी समय मेरे हाथ से छत्र नींद के कारण गिर गया था।”

यह रामायण की अद्भुत कथा में से एक है , जिसे काफी लोग अवगत नहीं होंगे।