उत्तरप्रदेश में ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ का नारा क्यों लगा था?

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उत्तरप्रदेश में 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ का नारा क्यों लगा था?

राम मंदिर लहर से 1991 में कल्याण सिंह की अगुवाई में भाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज़ हुई थी. उस वक़्त भाजपा को कुल 415 में से 221 सीटें मिली थीं. साल 1992 में जब बाबरी मस्जिद तोड़ी गई, उसके बाद 1993 में सपा-बसपा ने भाजपा को रोकने के लिए हाथ मिलाने का फ़ैसला किया था.

1993 के विधानसभा चुनावों में बसपा और समाजवादी पार्टी एक साथ चुनाव लड़े थे. इस दोनों दलों ने नारा दिया था- ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम.’ इन दोनों पार्टियों को चुनाव में जीत मिली और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने. हालांकि 1995 में मायावती ने गठबंधन से अपना हाथ खींच लिया और मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई थी.

90 को वो दौर जब दक्षिणपंथी राजनीतिक ने देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक रखा था। उस दौरा में अंबेडकर के राजनीतिक वारिस कांशी राम ने समाजवादी मुलायम सिंह यादव को अपनी अलग पार्टी बनाने की सलाह दी। दरअसल कांशीराम ने एक साक्षात्कार में कहा था कि यदि मुलायम सिंह से वे हाथ मिला लें तो उत्तर प्रदेश से सभी दलों का सूपड़ा साफ हो जाएगा।

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इस साक्षात्कार पढ़ते ही मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांशीराम से मिलने उनके निवास पर पहुंचे। उस मुलाक़ात में कांशीराम ने नये समीकरण के लिए मुलायम सिंह को पहले अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी और 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया।

जिस दिन के लिए कांशी राम ने मुलायम सिंह यादव को अपने साथ लिया था वो दिन आ चुका था। साल 1993 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव। राममंदिर और मंडल के दौर में बीजेपी से लोहा लेना खतरे से खाली नहीं था। कांशीराम ने मुलायम सिहं यादव को साथ लेकर दलितों और पिछड़ों के वोट को एक करने की कोशिश की।

1993 में समाजवादी पार्टी ने 256 सीटों पर और बहुजन समाज पार्टी ने 164 सीटों पर विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा। परिणाम आए तो समाजवादी पार्टी 256 में से 109 सीटों पर कब्जा किया। वही बीएसपी ने 164 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की। इस तरह पहली बार उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज की सरकार बनाने में कामयाबी भी हासिल कर ली। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने और बसपा के नेताओं को कैबिनेट में जगह मिली।

गठबंधन की सरकार से उत्साहित होकर बहुजन कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया- ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम।’ये गठबंधन उस वक्त की सबसे सफल सोशल इंजीनियरिंग मानी जाती है। 2 नवम्बर, 1990 को जब अयोध्या की तरफ बढ़ रहे लाखों कारसेवकों को रोकने में सुरक्षाबल असफल होने लगे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर गोलियां चलाई गई।

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अयोध्या की गलियों में खून बह रहा था और अयोध्या सरयू पुल पर कारसेवकों के शव बिखरे पड़े थे। सरकारी आंकड़ों में करीब डेढ़ दर्जन लोगों की गोलियां लगने से मौत हुई थी लेकिन असल हकीकत में मरने वालों की संख्या ज्यादा थी। देशभर में राम मंदिर के लिए आंदोलन चल रहे थें।बावजूद इसके 1993 में मुलायम सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।

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और ये सफलता सपा-बसपा के गठबंधन की वजह से मिली। शायद दलित-पिछड़ों की साझा मजबूती को कांशी राम बहुत पहले समझ चुके थें और इसलिए उन्होंने कहा था कि यदि दलित पिछड़े एक हो जाए तो उत्तर प्रदेश से सभी दलों का सुपड़ा साफ हो जाएगा।

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. News4social इनकी पुष्टि नहीं करता है. यह खबर इंटरनेट से ली गयी है। इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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