क्या आर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद से भारत पर भी होगा असर?

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क्या आर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद से भारत पर भी होगा असर?

आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच सीमाओं को लेकर विवाद (Armenia-Azerbaijan Conflict) चल रहा है, जो हिंसक हो चुका है. लेकिन यह विवाद भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan Conflict) के बीच कश्मीर विवाद (Kashmir Issue) या भारत और चीन के बीच सीमा विवाद (India-China Border Dispute) से काफी अलग स्थिति है. बहरहाल, नागोर्नो और कारबाख क्षेत्र में चल रहे विवाद में पाकिस्तान और तुर्की (Turkey) खुलकर अज़रबैजान के समर्थन में आ गए हैं, जबकि भारत ने फिलहाल यही कहा ​है कि शांति और बातचीत (Peace Talks) से ही मसला हल करना चाहिए.

चीन के साथ सीमा विवाद में उलझने के साथ ही तनाव के बीच युद्ध की स्थिति के लिए पूरी तरह तैयारी कर चुके भारत ने हमेशा ही अंतर्राष्ट्रीय विवादों को बातचीत से सुलझाने का पक्ष लिया है. इस बार भी विदेश मंत्रालय ने आर्मेनिया और अज़रबैजान को शांति से विवाद सुलझाने की सलाह दी है लेकिन भारत के इन दोनों देशों से रिश्ते एक इशारा कर रहे हैं. साथ ही, यह भी समझना चाहिए कि इस झगड़े में भारत की भूमिका कैसे कश्मीर मुद्दे पर असर डाल सकती है.

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सुरक्षा और सहयोग आधारित संगठन (OSCE) के हिसाब से शांति बहाली की हिमायत करने वाले भारत के रिश्ते आर्मेनिया के साथ खासे दिलचस्प रहे हैं. इसी साल, मार्च में भारत ने आर्मेनिया को हथियार सप्लाई करने के लिए रूस और पोलैंड को मात देकर 4 करोड़ डॉलर की डील की. इससे पहले भी आर्मेनिया के साथ भारत के रिश्ते आपसी सहयोग के रह चुके हैं.

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संबंध दोस्ताना ही रहे हैं, लेकिन इनमें ताज़गी नहीं है. भारत के कला प्रतिनिधि रबींद्रनाथ टैगोर, विचार प्रतिनिधि और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अज़रबैजान की यात्राएं की थीं, लेकिन यह तब की बात है जब यह मुल्क सोवियत समाजवादी गणतंत्र हुआ करता था. अज़रबैजान जबसे सोवियत संघ से अलग हुआ है, तबसे यानी करीब 20 सालों से कोई उच्च स्तरीय मेलजोल नहीं रहा है.

अगर इस झगड़े में भारत खुलकर आर्मेनिया के साथ खड़ा नज़र आता है तो कश्मीर के मामले पर कूटनीतिक स्तर पर प्रतिक्रियाएं उसे झेलना पड़ सकती हैं. येरेवान में भारत के राजनयिक रहे अचल मल्होत्रा ने स्पूतनिक के साथ बातचीत में कहा, ‘हालांकि कश्मीर मुद्दा अलग है. यह कश्मीर के राजा की तरफ से भारत को मिला हिस्सा है, लेकिन पाकिस्तान यहां अवैध ढंग से काबिज़ रहा है. इसके बावजूद भारत का आर्मेनिया का पक्ष लेना, पाकिस्तान और तुर्की को एक मौका देगा कि वो इस्लामी देशों के संगठन में भारत के खिलाफ एक माहौल या वितंडावाद खड़ा कर सकें.’